What is utility of ER 91 today in Hindi

आज ईआर 91 की उपयोगिता क्या है?, What is utility of ER 91 today?

डिप्लोमा इन फार्मेसी कोर्स दो वर्ष का डिप्लोमा कोर्स है जिसे मुख्यतया मेडिकल स्टोर शुरू करने के लिए किया जाता है. यह कोर्स फार्मेसी ब्रांच का सबसे बेसिक कोर्स है.

भारत में फार्मेसी की पढाई को फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया द्वारा रेगुलेट किया जाता है. अलग-अलग कोर्स को रेगुलेट करने के लिए फार्मेसी एक्ट के अंतर्गत अलग-अलग नियम कायदे बनाए गए हैं.

भारत में डिप्लोमा इन फार्मेसी का जो कोर्स वर्तमान में चल रहा है उसे रेगुलेट करने के लिए वर्ष 1991 में एजुकेशन रेगुलेशन बनाया गया था जिसे ईआर 91 के नाम से जाना जाता है.

वर्ष 1991 से लेकर आज तक इस कोर्स को उन्ही तीस वर्ष पुराने नियम कायदों से रेगुलेट किया जा रहा है. अभी भी इस कोर्स के माध्यम से उसी सिलेबस को पढाया जा रहा है जिसका महत्व शायद तीस वर्ष पहले हुआ करता होगा लेकिन वर्तमान में यह महत्वहीन है.

डिप्लोमा की पढाई में उन बातों को बताया और सिखाया जाता है जो बातें आज अनुपयोगी हो चुकी हैं. डिप्लोमा के सेकंड इयर में फार्माकोलॉजी और फार्मास्यूटिकल केमिस्ट्री के अंतर्गत बहुत सी उन दवाओं को पढाया जा रहा है जिनका बाजार से अस्तित्व वर्षों पहले समाप्त हो चुका है.

बाबा आदम के जमाने की पढाई करवाकर पीसीआई किस तरीके के फार्मासिस्ट तैयार करना चाह रही है? इस कोर्स की पढाई करने के बाद मे बहुत से विद्यार्थियों को ऐसे कौनसे ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है कि कोर्स पूरा होने के बाद में उन्हें अपनी पढाई को चंद रुपयों की खातिर गिरवी रखना पड़ता है?

पिछले तीस वर्षों में पीसीआई ने इस ईआर 91 में सिर्फ एक बार ही बदलाव किया है. यह बदलाव वर्ष 1996 में हुआ था जब एक अमेंडमेंट के द्वारा डिप्लोमा की पढाई में पासिंग मार्क्स को पचास प्रतिशत से घटाकर चालीस प्रतिशत किया गया था.

पीसीआई ने ऐसी कौनसी रिसर्च करने के बाद में डिप्लोमा इन फार्मेसी का सिलेबस बनाया था कि जिसे आज तीस वर्षों के बाद में भी बदलने की कोई जरूरत ही महसूस नहीं की जा रही है?

इस कोर्स को पास करके जब विद्यार्थी फील्ड में निकलता है तो उसकी हालत उस सैनिक जैसी हो जाती है जिसे अपनी टीपू सुल्तान के जमाने की दुनाली बन्दूक से एके 47 धारी सैनिक से मुकाबला करना हो.

ये तो ऊपरवाले का शुक्र है जिसने पीसीआई का यह सिलेबस ईआर 91 के समय से ही पूरे भारत में लागू कर रखा है. शायद पीसीआई ने बिना किसी भेदभाव के सभी सैनिकों को दुनाली बन्दूक से ही लड़ने की परमिशन दे रखी है.

स्टूडेंट्स जब अपने तीस वर्ष पुराने ज्ञान को लेकर बाजार में आते हैं तो उन सभी बातों की महत्ता नगण्य पाते हैं जो उन्होंने डिप्लोमा की पढाई में पढ़ी थी. जो कुछ पढ़ा था वह कुछ भी आज की स्थिति में काम नहीं आता है.

जब कोई व्यक्ति वक्त के साथ नहीं चलता है तो वक्त उसे अपने साथ लेकर नहीं चलता है. आज के समय में अपडेट रहना जरूरी है. यह बात विद्यार्थी के साथ-साथ पीसीआई जैसी संस्था के लिए भी लागू होती है. मेरे हिसाब से किसी भी कोर्स का सिलेबस प्रत्येक पाँच वर्षों में अपडेट होना ही चाहिए.

पाँच वर्षों का समय एक लम्बा समय होता है जिसमे बहुत सी चीजे बदल जाती हैं और बहुत सी नई आ जाती हैं. सिलेबस आधुनिक परिवेश में ढालकर इस प्रकार का बनाया जाना चाहिए कि जब विद्यार्थी किसी क्षेत्र में जाए तो उसे लगे कि उसने यह सब कुछ पढ़ रखा है.

जब कॉलेज में कुछ और पढ़ा हो और वास्तविकता में सामने कुछ और आता हो तो पढाई का सम्पूर्ण समय व्यर्थ होता प्रतीत होता है. शायद वह समय चंद कागज़ के टुकड़े बटोरने ने निकल चुका होता है.

पीसीआई को या तो डिप्लोमा के सिलेबस को अपडेट करना चाहिए या फिर जिस प्रकार इंडियन नर्सिंग कौंसिल ने इस वर्ष से जीएनएम कोर्स को बंद कर दिया है उस प्रकार बंद कर देना चाहिए.

जिस प्रकार पीसीआई ने पिछले कुछ वर्षों में डिप्लोमा इन फार्मेसी के नए कॉलेज शुरू किये हैं उसे देखते हुए तो इस कोर्स को बंद करने की कोई योजना नहीं लगती है. जब बंद नहीं करना है तो फिर इसे अपडेट करना बहुत जरूरी है.

उम्मीद है कि पीसीआई अपनी कुम्भकर्ण जैसी नींद को त्यागकर इस दिशा में कार्य करेगी.

लेखक, Writer

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}


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