Analysis of ER 2020 for D Pharm in Hindi

डी फार्म के लिए ईआर 2020 का विश्लेषण, Analysis of ER 2020 for D Pharm

लगभग तीन दशक के बाद में फार्मेसी के डिप्लोमा कोर्स को रेगुलेट करने के लिए नए एजुकेशन रेगुलेशन 2020 का गजट नोटिफिकेशन 17 अक्टूबर को जारी हुआ है.

गजट में पब्लिश होने के बाद अब डिप्लोमा कोर्स को एजुकेशन रेगुलेशन 1991 के स्थान पर एजुकेशन रेगुलेशन 2020 द्वारा रेगुलेट किया जाएगा. इस एजुकेशन रेगुलेशन 2020 को आप भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ प्रिंटिंग की वेबसाइट www.egazette.nic.in से डाउनलोड कर सकते हैं.

डिप्लोमा इन फार्मेसी कोर्स लगभग तीन दशक पुराने नियम कायदों और पाठ्यक्रम पर आधारित था जिसे समय के साथ-साथ बदले जाने की आवश्यकता थी.

वैसे तो किसी भी कोर्स को प्रत्येक दशक के पश्चात अपडेट कर दिया जाना चाहिए क्योंकि बदलते समय के साथ-साथ कोर्स कंटेंट भी बदल जाता है. और जब बात किसी टेक्निकल या प्रोफेशनल कोर्स की हो तब यह और भी जरूरी हो जाता है.

फार्मेसी प्रोफेशन में बदलाव थोड़े मुश्किल से आते हैं और ऐसा लगता है कि यह एजुकेशन रेगुलेशन 2020 भी बड़े प्रयासों के पश्चात आया है. आपको शायद पता हो कि वर्ष 2014 में फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया ने एजुकेशन रेगुलेशन 1991 में अमेंडमेंट करने के लिए एजुकेशन रेगुलेशन 2014 के ड्राफ्ट को पब्लिश किया था.

यह एजुकेशन रेगुलेशन 2014 का ड्राफ्ट आज भी आपको फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर मिल जाएगा. अगर आप इस ड्राफ्ट की तुलना एजुकेशन रेगुलेशन 2020 से करेंगे तो पाएँगे कि दोनों लगभग एक जैसे ही हैं.

मतलब यह है कि वर्ष 2014 के ड्राफ्ट को अब छः वर्ष के पश्चात एजुकेशन रेगुलेशन 2020 के रूप में मंजूरी दी गई है. इसमें डिप्लोमा के फर्स्ट और सेकंड इयर के सब्जेक्ट्स के नाम भी वैसे के वैसे ही हैं जो 2014 के ड्राफ्ट में दिए गए हैं.

एजुकेशन रेगुलेशन 2020 में सिलेबस के बारे में जानकारी नहीं दी गई है लेकिन हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि जिस प्रकार सब्जेक्ट्स के नाम 2014 के ड्राफ्ट के अनुसार है तो सिलेबस भी उसी के अनुसार होना चाहिए. गौरतलब है कि वर्ष 2014 के ड्राफ्ट में डिप्लोमा का प्रस्तावित सिलेबस भी दिया हुआ है.

अगर हम उस सिलेबस को ही एजुकेशन रेगुलेशन 2020 का सिलेबस माने तो हम पाएँगे कि इस एजुकेशन रेगुलेशन 2020 में ज्यादा कुछ नया नहीं है. अधिकाँश सिलेबस एजुकेशन रेगुलेशन 1991 के समय का ही है, बस सब्जेक्ट्स के नाम बदल दिए गए हैं और सिलेबस को इधर उधर कर दिया गया है.

डिप्लोमा फर्स्ट और सेकंड इयर में चलने वाली फार्मासुटिक्स और फार्माकेमिस्ट्री नामक दोनों सब्जेक्ट्स में काट छाँट कर दोनों को एक विषय बना दिया गया है.

हेल्थ एजुकेशन एंड कम्युनिटी फार्मेसी का नाम बदल कर सोशल फार्मेसी, फार्मास्यूटिकल जुरिस्प्रुडेंस का नाम बदल कर फार्मेसी लॉ एंड एथिक्स कर दिया गया है. कहने का मतलब यह है कि सिलेबस में कोई खास बदलाव नहीं है.

भारत में अधिकाँश विद्यार्थी डिप्लोमा इन फार्मेसी कोर्स की पढाई इसलिए करते हैं ताकि वे अपनी स्वयं की फार्मेसी शुरू कर सकें. इसलिए इस कोर्स का सिलेबस भी ऐसा होना चाहिए जिससे इस कोर्स को करने वाले विद्यार्थी अपना कार्य भली भाँति कर पाए.

अगर डिप्लोमा में एडमिशन की बात की जाए तो एजुकेशन रेगुलेशन 2020 के अनुसार कोई भी व्यक्ति जिसने फिजिक्स, केमिस्ट्री के साथ बायोलॉजी या मैथ्स विषय में 10+2  की परीक्षा उत्तीर्ण कर रखी है वो डिप्लोमा इन फार्मेसी कोर्स में प्रवेश ले सकता है.

इस कोर्स को करने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है. एक बुजुर्ग व्यक्ति भी इस कोर्स में प्रवेश ले सकता है. बहुप्रतीक्षित एग्जिट एग्जाम के सम्बन्ध में कोई चर्चा नहीं की गई है.

टीचिंग स्टाफ में थोडा बदलाव किया गया है. पहले जहाँ तीन वर्ष के अनुभव के साथ बी फार्म फैकल्टी लेक्चरर के रूप में कार्य कर सकती थी वहीँ अब इनकी संख्या चार तक सीमित कर दी गई है. अब तीन फैकल्टी एम फार्म या फार्म डी योग्यताधारी रखना जरूरी है. शायद फार्म डी डॉक्टर्स के लिए एक नया स्कोप तैयार किया जा रहा है.

एक बात अभी भी समझ से परे है और वो बात है टीचिंग फैकल्टी में एमबीबीएस योग्यताधारी को घुसाना. इन्हें विजिटिंग फैकल्टी के रूप में एनाटोमी एंड फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री सब्जेक्ट्स पढ़ाने की अनुमति दी गई है. गौरतलब है की ये अनुमति एजुकेशन रेगुलेशन 1991 में भी थी.

क्या एक बी फार्म, एम फार्म या फार्म डी डिग्री होल्डर कैंडिडेट इतना योग्य नहीं है जो एनाटोमी एंड फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री सब्जेक्ट को पढ़ा सके? क्या इन सब्जेक्ट्स को पढ़ाने के लिए पीसीआई एक एमबीबीएस योग्यताधारी को फार्मेसी के कैंडिडेट से अधिक योग्य मानती है?

आखिर एमबीबीएस को फार्मेसी टीचिंग में घुसाने का क्या लॉजिक है? हम धन्य है कि एक एमबीबीएस फार्मेसी कॉलेज में पढ़ा भी सकता है और फार्मेसी कौंसिल का प्रेसिडेंट भी बन सकता है.

एक तो वर्ष 2014 में ड्राफ्ट बन जाने के छः वर्षों के पश्चात नया एजुकेशन रेगुलेशन 2020 आया है और इसमें भी कुछ खास नया नहीं है.

दूसरा, डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश की कोई उम्र सीमा निर्धारित नहीं होने से नॉन अटेडिंग स्टूडेंट्स की परंपरा को बढ़ावा मिल रहा है. शायद इसी वजह से ऐसा सुनने में आता रहता है कि पैसे खर्च करके घर बैठे-बैठे डिप्लोमा कोर्स किया जा सकता है.

डिप्लोमा कोर्स कोई दुधारू गाय नहीं है जिसे दुहते रहना है. यह एक प्रोफेशनल कोर्स है जिसकी एक गरिमा है जो बरकरार रहनी चाहिए. जब तक ये कमियाँ दूर नहीं होगी तब तक इस कोर्स के साथ-साथ फार्मेसी प्रोफेशन की प्रतिष्ठा भी दाव पर ही रहेगी.

लेखक, Writer

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}


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