Student Uncles of D Pharm in Hindi

डी फार्म के होनहार स्टूडेंट अंकल, Promising Student Uncle of D Pharm

भारत में डिप्लोमा इन फार्मेसी (डी फार्म) के दो वर्षीय कोर्स को एक ओपन गेम की तरह तैयार किया गया है जिसे कोई भी, किसी भी उम्र में खेल सकता है. तभी तो इस कोर्स में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की उम्र कई बार तो उनको पढ़ाने वाले टीचर्स की उम्र के दुगने से भी अधिक होती है.

गौरतलब है कि डिप्लोमा इन फार्मेसी कोर्स में प्रवेश के लिए कोई अधिकतम उम्र सीमा निर्धारित नहीं है. पीसीआई द्वारा इस कोर्स को रेगुलेट करने के लिए वर्ष 1991 में एजुकेशन रेगुलेशन (ईआर 91) लागु किया गया था.

गौरतलब है कि नब्बे के दशक में प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम का काफी बोलबाला था और शायद इस कोर्स को डिजाईन करते समय इस प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम से प्रेरणा ली गई हो. शायद इसी प्रेरणा की वजह से इस कोर्स में प्रवेश की अधिकतम उम्र सीमा निर्धारित नहीं की गई है.

पीसीआई की दूरदर्शिता की दाद देनी चाहिए जिसने आज से तीस वर्ष पहले यह अंदाजा लगा लिया था कि बीसवीं सदी के शुरूआती दशकों में डिप्लोमा इन फार्मेसी कोर्स अघोषित रूप से प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम का प्रमुख हिस्सा होगा.

इस कोर्स में प्रवेश के लिए कोई अधिकतम उम्र सीमा निर्धारित नहीं होने की वजह से आज यह कोर्स चालीस-पचास वर्षीय कई दवा के दुकानदारों को भी अपनी प्रौढावस्था में फार्मेसी की पढाई करने का मौका देकर शिक्षा का अलख जगा रहा है.

ऐसा लगता है कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ बुद्धिमता इतनी अधिक बढ़ जाती है कि इस बढती उम्र में भी लोग बड़ी आसानी से डिप्लोमा की पढाई को पूरा कर लेते हैं.

कई लोग तो इतने अधिक बुद्धिमान हो जाते हैं कि अगर उन्होंने तीस वर्ष पहले आर्ट्स या कॉमर्स से बारहवीं की पढाई की है तो वे सबसे पहले पहले साइंस विषय लेकर बड़ी सहजता से बारहवी कक्षा उत्तीर्ण कर लेते हैं और फिर उसी आसानी से डिप्लोमा की पढाई भी पूरी कर डालते हैं.

जिन लोगों ने अपनी युवावस्था में साइंस विषय का चयन करने की हिम्मत नहीं दिखाई थी वो लोग पैंतीस चालीस वर्ष की उम्र में साइंस विषय लेकर खेलते कूदते बोर्ड की परीक्षा पास कर डालते हैं. ओपन स्कूल के साथ-साथ कई राज्यों के बोर्डों ने इस समस्या को काफी हल कर दिया है.

एक सामान्य विद्यार्थी के लिए ये लोग स्टूडेंट अंकल होते हैं क्योंकि बारहवीं के बाद डिप्लोमा में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थी की उम्र सत्रह-अठारह वर्ष से अधिक नहीं होती है. अक्सर हमें डिप्लोमा की पढाई में दो पीढ़ियाँ साथ पढ़ती नजर आती हैं.

अगर कॉलेज की अटेंडेंस के हिसाब से देखें तो ये स्टूडेंट अंकल काफी मेहनतकश होते हैं और रोजाना कॉलेज में उपस्थित होकर कई बार तो अपने पुत्रों की उम्र के बराबर के शिक्षकों से भी ज्ञान अर्जित करते हैं. अटेंडेंस रजिस्टर में आज तक शायद ही किसी विद्यार्थी की अटेंडेंस तय मानकों से कम पाई गई होगी.

इस उम्र में भी ये लोग सामाजिक, पारिवारिक, धार्मिक, राजनीतिक आदि जिम्मेदारियाँ निभाते हुए ज्ञान अर्जित करते हैं. अन्य विद्यार्थियों को इन स्टूडेंट अंकल से और कुछ न सही तो मैनेजमेंट का हुनर तो अवश्य सीखना चाहिए.

ऐसा नहीं है कि ये विद्यार्थी इस कोर्स में प्रवेश लेने से पहले इतने अधिक टैलेंटेड होते हैं. जिस प्रकार किसी भी क्षेत्र में गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता है ठीक उसी प्रकार फार्मेसी में भी यह उपलब्धि बिना गुरुओं के सहयोग के संभव नहीं है.

ऐसे गुरुओं के साथ-साथ उन सभी गुरुकुलों को भी प्रणाम किया जाना चाहिए जिनमे इस प्रकार की प्रतिभाएँ तराशी जा रही हैं.

वैसे इन गुरुकुलों में अध्ययनरत इन स्टूडेंट अंकल की अटेंडेंस को अगर क्रॉस वेरीफाई कर लिया जाए तो इनमे से कईयों के पास हमारे पुराने ऋषि मुनियों की तरह एक समय में दो जगह मौजूद रहने जैसी सिद्धि होने का पता चल सकता है.

ये सिद्ध लोग अपनी इस कला का प्रदर्शन एक समय में कॉलेज में मौजूद होने के साथ-साथ अन्य जगह पर भी मौजूद होकर दे सकते हैं.

हो सकता है इन सिद्धि धारकों में से कुछ ने अपनी इस क्षमता का फायदा कुछ प्रैक्टिकल परीक्षाओं में भी उठाया हो और दिखा दिया हो कि वे एक ही समय में परीक्षा केंद्र में मौजूद होकर परीक्षा भी दे सकते हैं और किसी अन्य स्थान पर मौजूद होकर अपने जरूरी कार्य भी निपटा सकते हैं.

ये जाँच का विषय हो सकता है कि कई गुरुकुलों में इस प्रकार की चमत्कारिक शक्तियों का प्रयोग गुरुकुल और ऋषियों की अनुमति से होता है या साधक ही अपने आप को इतना अधिक साध लेता है कि इस बात का पता ही नहीं चल पाता है.

ऐसी शक्तियाँ सभी को नहीं मिल पाती हैं. इस प्रकार की शक्तियों को प्राप्त करने के लिए धन, मन और तन के साथ-साथ कठोर परिश्रम करना होता है.

इन विद्यार्थियों में से कई विद्यार्थी तो पढ़ते-पढ़ते इतने अधिक होनहार हो जाते हैं कि वो डिप्लोमा के सभी सब्जेक्ट के नाम भी सही से नहीं बता पाते हैं और अगर सब्जेक्ट्स के नाम की स्पेलिंग लिखवा ली जाए तो शायद अधिकांश लोग अशुद्ध लिख कर अपनी योग्यता का प्रदर्शन करें.

ऐसा नहीं है कि सभी स्टूडेंट अंकल ही ऐसे होते हैं. कुछ लोग सचमुच मेहनत करके भी इस पढाई को करते हैं लेकिन इनकी संख्या नगण्य ही है.

अब तो सुनने में यह भी आता है कि बहुत से गुरुकुलों ने अपने ऋषियों के माध्यम से डी फार्म कोर्स को विद्यार्थियों की सुविधानुसार विभिन्न पैकेजों में विभक्त कर दिया है. पैकेज के अनुसार सुविधाएँ दी जाती हैं. सुनने में आया है कि कॉलेज ना आने का अलग पैकेज और परीक्षा में चमत्कारिक सिद्धियाँ उपयोग करने का अलग पैकेज.

इन कार्यों के लिए बाजार में एजेंट बनाये गए हैं. अक्सर सोशल मीडिया और अखबारों में इस तरह के विज्ञापन देखने को मिल जाते हैं. सुना है कि बहुत से ऋषियों और गुरुकुलों का तो अस्तित्व ही इस प्रकार की गतिविधियों पर निर्भर है.

इंडियन नर्सिंग कौंसिल ने इसी वर्ष से जीएनएम कोर्स को बंद करने का निर्णय लिया है लेकिन पीसीआई डिप्लोमा कोर्स बंद करने के बारे में सोचना भी नहीं चाहती है. शायद पीसीआई का लक्ष्य उन सभी दवा के दुकानदारों को डिप्लोमा की पढाई करवाना है जो युवावस्था में इसको करने से वंचित रह गए थे.

इन बुजुर्ग विद्यार्थियों की वजह से ही शायद आज डिप्लोमा कोर्स की मांग फार्मेसी के अन्य सभी कोर्सों में सबसे अधिक हैं.

इस मांग को देखते हुए पीसीआई ने उसी अनुपात में आपूर्ति बढाने की ठान रखी है तभी तो पिछले कुछ वर्षों में लगभग एक हजार से अधिक नए कॉलेजों की शुरुआत की गई है. ऐसा करके पीसीआई “जहाँ दवा वहाँ फार्मासिस्ट” का लक्ष्य प्राप्त करने में लगी हुई है.

पिछले कुछ वर्षों से डिप्लोमा फार्मेसी पास करने वाले विद्यार्थियों के लिए एग्जिट एग्जाम शुरू करने की कवायद भी चल रही है. अब यह एग्जाम सच में होगा या सिर्फ अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हवा बनाई जा रही है इस बात का पता तो अभी भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है.

लेखक, Writer

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}


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