Is DRx Title Legal in Hindi

क्या DRx टाइटल लीगल है?, Is DRx Title Legal?

आप लोग यह तो जानते ही हैं कि किसी भी व्यक्ति के नाम के आगे अगर उसकी शिक्षा से अर्जित कोई टाइटल लगे तो वह बड़े गर्व और इज्जत की बात होती है जैसे किसी डॉक्टर के नाम के आगे Dr और किसी इंजीनियर के नाम के आगे Er.

जब टाइटल वैध और मान्यता प्राप्त होता है तो वह समाज में व्यक्तिगत इज्जत और प्रतिष्ठा को तो बढ़ाता ही है साथ में उस ज्ञान की भी प्रतिष्ठा बढती है जिसे उस टाइटल धारी व्यक्ति ने अर्जित किया है.

लेकिन जब कोई व्यक्ति अवैध और अमान्य टाइटल अपने नाम के आगे लगाता है तो वह अपनी व्यक्तिगत इज्जत के साथ-साथ उस ज्ञान की प्रतिष्ठा को भी मिट्टी में मिला देता है जिसे उसने या उसके सहपाठियों ने बड़ी मेहनत से अर्जित किया हुआ होता है.

कुछ इसी तरह के अवैध और अमान्य टाइटल को अपने नाम के आगे लगाने का चलन पिछले कुछ वर्षों से फार्मेसी प्रोफेशन में चल रहा है जिससे फार्मेसी प्रोफेशन की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है.

फार्मेसी प्रोफेशन के कई लोग सोशल मीडिया पर अपने नाम के आगे DRx नामक टाइटल का धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं. ये लोग इस टाइटल को शायद यह मानकर अपने नाम के आगे लगा रहे हैं कि इसे लगाने से समाज में उनकी इज्जत बढ़ जाएगी.

लेकिन हो इसका उल्टा रहा है. दरअसल यह टाइटल अवैध और अमान्य है जिसे ना तो सरकार की तरफ से और ना ही फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया की तरफ से कोई मान्यता है.

इस टाइटल को देख कर कई लोग इसके बारे में कौतुहल वश पता करते हैं तो उन्हें पता चलता है कि DRx कोई वैध और मान्यता प्राप्त टाइटल नहीं है. इसे तो बस अपने आप को दवाइयों का विशेषज्ञ मानने की अभिलाषा को शांत करने मात्र के इरादे से लगाया गया है.

कई बार मुझसे भी कई लोगों ने इस टाइटल के लिए पूछा है. उस समय मेरे पास नजरे बचाने के अलावा कोई चारा नहीं रहा.

क्या डॉक्टर के टाइटल Dr के आगे x लगाकर हम अपने आपको डॉक्टर के समकक्ष दिखाने की चेष्टा कर रहे हैं? क्या हमें अपने आपको फार्मासिस्ट बताने में शर्म आती है जो हम अवैध टाइटल से इसे छुपाना चाहते हैं?

यह टाइटल लगाने की शुरुआत कब और कहाँ से हुई यह अभी किसी को नहीं पता. बस केवल देखा देखी और भेडचाल की वजह से अधिकांश फार्मासिस्ट इसका प्रयोग करने लग गए हैं.

हो सकता है कि इस टाइटल का प्रयोग कुछ उन फार्मासिस्टों ने शुरू किया हो जो कई सालों तक प्रवेश परीक्षा देने के बाद में भी मेडिकल में प्रवेश नहीं पा सके और अब अपनी उसी दबी हुई इच्छा को इस DRx की मदद से पूरा करना चाह रहे हों.

अगर ऐसा है तो कुछ लोगों की वजह से यह पूरा फार्मेसी प्रोफेशन अपनी इज्जत गवा रहा है. एक तो वैसे ही फार्मेसी प्रोफेशन की इज्जत सरकार और समाज की नजर में ना के बराबर है, ऊपर से अवैध टाइटल की वजह से ये भी जा रही है.

हमें यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि वास्तविकता में फार्मासिस्ट की ना तो मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में और ना ही अन्य किस क्षेत्र में कोई विशेष पहचान है.

ले देकर बस एक ही पहचान है और वो है दवा बाँटने वाली निजी या सरकारी दुकान पर उपस्थित व्यक्ति के रूप में. बहुत से फार्मासिस्टों के द्वारा अपनी शिक्षा को लाइसेंस के रूप में भाड़े पर चढाने के कारण निजी क्षेत्र में तो यह पहचान भी खोती जा रही है.

एक तो वैसे ही पहचान का संकट है और ऊपर से हद तो तब हो गई जब शताब्दियों में आने वाली महामारी में भी फार्मासिस्ट को कोई नहीं पूँछ रहा है. विद्यार्थी नौकरी के लिए गुहार लगा रहे हैं और शिक्षक पूरी नहीं तो कुछ प्रतिशत सैलरी पाने की उम्मीद में बैठे हैं.

जब कोई दूसरा इज्जत ना करे तो हमें खुद को हमारी इज्जत करनी आती है और शायद इसी वजह से अधिकांश फार्मासिस्ट एक दूसरे को कोरोना वारियर बताकर एक दूसरे को बधाइयाँ देकर दिल को खुश कर रहे हैं.

वैसे सच्चाई यह है कि दिल को सुकून तब मिलता है जब कोई अनजान व्यक्ति आपकी शिक्षा के बारे में सुनकर आपको इज्जत बक्शे. आखिर कोई कब तक धैर्य धरे, पैसा भी ना मिले और इज्जत भी नहीं, यह तो अन्याय है.

दुःख तो इसलिए और बढ़ जाता है कि फार्मासिस्ट के साथ-साथ फार्मेसी प्रोफेशन के तथाकथित पुरोधाओं की भी कोई इज्जत नहीं हो रही है. महामारी काल में इन्हें भी सामान्य फार्मासिस्ट की तरह कोई नहीं पूँछ रहा है.

जब कभी किसी इकलौते आदमी का अपमान होता है तो बड़ा दुःख होता है लेकिन जब सभी का अपमान होता है तब दुःख नहीं होता है, शायद हमने इस फलसफे को अपना गम गलत करने का जरिया बना लिया है.

हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि अपनी इज्जत अपने हाथ में होती है. इसलिए मेरा उन सभी फार्मासिस्ट बंधुओं से निवेदन है कि वे इस अवैध और अमान्य टाइटल से छुटकारा पाएँ और अगर उन्हें अपने नाम के आगे कुछ लगाना ही है तो केवल और केवल फार्मासिस्ट लगाएँ.

लेखक, Writer

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}


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