Taj in USA and Babaji's Thullu in India? in Hindi

अमेरिका में ताज और भारत में बाबाजी का ठुल्लू?, Taj in USA and Babaji's Thullu in India?

फार्मेसी स्टूडेंट बनी मिस अमेरिका, भारत में फार्म डी की हालत

इस बार मिस अमेरिका 2020 का खिताब अमेरिका के वर्जिनिया की एक बायोकेमिस्ट कैमिला श्रियर ने जीत लिया है, यह खबर कुछ विशेष नहीं लगी क्योंकि मिस अमेरिका हर वर्ष ही चुनी जाती रही है और यह कोई नई बात नहीं है.

परन्तु जब इस खबर को पूरा पढ़ा तो बड़ी प्रसन्नता हुई. अब आप सोचेंगे कि किसी अमेरिकी महिला ने मिस अमेरिका का खिताब जीता है, तो इसमें ऐसी खुशी की क्या बात है? आप का सोचना बिलकुल सही है, इसमें ऐसी कोई खुशी की बात नहीं होनी चाहिए. हर वर्ष इस खिताब को कोई न कोई महिला जीतती रहती है.

परन्तु अगर मैं आपसे कहूँ कि इस खिताब को जीतने वाली महिला, जिसका नाम कैमिला श्रियर (Camille Schrier) है और यह बायोकेमिस्ट होने के साथ-साथ फार्मेसी की विद्यार्थी भी है, तो शायद आपको भी यह खबर प्रसन्नता से भर देगी.

जी हाँ, इस बार की मिस अमेरिका कैमिला श्रियर एक फार्मेसी की विद्यार्थी है और वर्तमान में यह वर्जिनिया कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटी (Virginia Commonwealth University) में वीसीयू स्कूल ऑफ फार्मेसी (VCU School of Pharmacy) से फार्म डी (डॉक्टर ऑफ फार्मेसी) कोर्स कर रही है. इन्होंने हाल ही में इस कोर्स में प्रवेश लिया है तथा इनका कोर्स वर्ष 2023 तक पूरा होगा.

इससे पहले इन्होंने वर्ष 2015 से वर्ष 2018 तक वर्जिनिया टेक से सिस्टम बायोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री में डिग्री हासिल की है. ख़ास बात यह है कि ये इस वर्ष जून में मिस वर्जिनिया भी रह चुकी हैं.

पिछले वर्ष से मिस अमेरिका कॉन्टेस्ट के फॉर्मेट में बदलाव किया गया है. पहले जो स्विमसूट सेगमेंट होता था उसे हटाया गया है. अब शारीरिक दिखावट और सुन्दरता की जगह प्रतिभा एवं जूनून को प्रमुखता दी गई है. इन बदलावों के बाद ज्यादा महिलाओं ने मिस अमेरिका प्रतियोगिता में हिस्सा लेना शुरू कर दिया है.

ये स्टेज पर एप्रन पहन कर गई तथा इन्होंने वहाँ पोटैशियम आयोडाइड तथा हाइड्रोजन पेरोक्साइड का उपयोग करते हुए एलेफेंट टूथपेस्ट (Elephant Toothpaste) बनाया जो कि एक फोम के रूप में प्राप्त होता है.

इनकी वजह से फार्मेसी फील्ड का नाम पूरी दुनिया में हुआ है क्योंकि सभी प्रमुख समाचार पत्रों ने इस बात को भी प्रमुखता से छापा है कि ये फार्मेसी की विद्यार्थी हैं.

कैमिला श्रियर जिस कोर्स की पढाई कर रही है उस कोर्स का भारत में क्या हाल है, इस पर भी बात होनी चाहिए. जब तक भारत में फार्म डी कोर्स शुरू नहीं हुआ था तब तक फार्मेसी में डिप्लोमा, डिग्री तथा मास्टर डिग्रीधारी रोजगार की तलाश में भटकते थे, परन्तु अब इस लाइन में ये लोग भी आकर खड़े होने लग गए हैं.

भारत में फार्म डी कोर्स तो शुरू कर दिया गया है, परन्तु डिग्री धारकों के लिए रोजगार के क्या अवसर होंगे, इसकी तरफ सरकार के साथ-साथ फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया का भी कोई ध्यान नहीं है.

हजारों विद्यार्थी इस कोर्स को पूरा करके, रोजगार की उम्मीद में फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया तथा सरकार की तरफ टकटकी लगाकर देख रहे हैं.

फार्म डी डिग्री होल्डर अपने लिए रोजगार, कैडर, क्लिनिकल फार्मासिस्ट के पद आदि मुद्दों को लेकर बार-बार फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया से मांग कर रहे हैं. एक छात्र के पिता ने फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया के सामने कई-कई दिनों तक धरना भी दिया है, परन्तु फिर भी कुछ खास नहीं हो पाया है.

हाँ, फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया ने फार्म डी डिग्री होल्डर को ड्रग स्टोर (फार्मेसी) शुरू करने का अधिकार देकर मजाक जरूर किया है. यह सोचने वाली बात है कि क्या फार्मेसी में डॉक्टरेट करने वाला विद्यार्थी ड्रग स्टोर शुरू करेगा?

क्या फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया उसे इतना अधिक बेवकूफ समझती है कि वह ड्रग स्टोर खोलने के लिए अपने बहुमूल्य छः वर्ष लगाएगा? अगर उसे ड्रग स्टोर ही खोलना होगा तो वह दो वर्ष का डिप्लोमा करेगा, छः वर्ष का कोर्स करकें अपने चार वर्ष व्यर्थ में क्यों गवाएगा?

किसी भी क्षेत्र में उच्च शिक्षित व्यक्ति को निम्न शिक्षित व्यक्ति का कार्य तभी करना पड़ता है जब उसकी योग्यतानुसार रोजगार उपलब्ध ना हो. और यही बात इस सम्बन्ध में लागू होती है.

फार्मेसी स्टूडेंट बनी मिस अमेरिका, भारत में फार्म डी की हालत

फार्म डी डिग्री होल्डर को उस क्षेत्र में रोजगार मिलना चाहिए जिस क्षेत्र के लिए वह शिक्षा ग्रहण कर रहा है. उसे बतौर क्लिनिकल फार्मासिस्ट, अस्पतालों में अपनी सेवा देने का मौका मिलना चाहिए. परन्तु वर्तमान हालात देखकर कतई नहीं लगता है कि निकट भविष्य में ऐसा होगा.

भारत के अस्पतालों में एलोपैथिक डॉक्टर्स का वर्चस्व रहता है. दरअसल फार्म डी डिग्री होल्डर भी डॉक्टर नामक टाइटल से नवाजे जाते हैं. ऐसी स्थिति में क्या ये एलोपैथिक डॉक्टर्स चाहेंगे कि अस्पतालों में इनके अतिरिक्त कोई अन्य फार्म डी डिग्री होल्डर डॉक्टर आए?

मुझे तो यह नहीं लगता, क्योंकि जब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को फार्म डी डिग्री होल्डर को डॉक्टर टाइटल दिए जाने से ही आपत्ति है, तो फिर वह किस प्रकार इन्हें स्वीकारेंगे?

स्वास्थ्य के पूरे सरकारी सिस्टम में इन एलोपैथिक डॉक्टर्स का बोलबाला है, और इस बोलबाले के आगे सब बेबस हैं. वैसे भी एक कहावत मशहूर है कि भैंस उसी की होती है जिसके पास लाठी होती है.

डॉक्टर्स के पास अपनी बात मनवाने के लिए हड़ताल रुपी लाठी है जिसे वे जब चाहे मारते रहते हैं. इनकी इस लाठी का सरकार तथा जनता पर असर भी होता है. फार्मासिस्ट के पास ऐसी कोई लाठी नहीं है.

फार्मासिस्ट की बातें मानना तो दूर, सरकार तो हेल्थ केयर सिस्टम में कहीं पर भी फार्मासिस्ट की जरूरत ही नहीं समझती है. इस बात को ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट में शेड्यूल K के सीरियल नंबर 5 और 23 के माध्यम से अच्छी तरह बता भी दिया है.

जब अस्पतालों में फार्म डी डिग्री धारक के लिए कोई पोस्ट ही नहीं है तो फिर इस कोर्स को करने से फायदा क्या है? आखिर भारत में विद्यार्थियों को यह कोर्स क्यों करवाया जा रहा है? इतना पैसा और इतना समय बर्बाद करके विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है?

डी फार्म (डिप्लोमा इन फार्मेसी) और फार्म डी (डॉक्टर ऑफ फार्मेसी) कोर्सेज के मिलते जुलते नामों को देखकर लोग इन्हें उल्टा सीधा एकसमान (डी फार्म का उल्टा फार्म डी) समझने लग गए हैं. इस वजह से समाज में अधिकतर लोग तो इन्हें एक ही कोर्स मानते हैं.

यह सोचने वाली बात है कि फार्मेसी में उच्चतम कोर्स की तुलना निम्नतम कोर्स (पढाई के वर्षों के अनुसार) से की जा रही है. पीसीआई की वजह से फार्मेसी के डॉक्टर्स की क्या हालत हो गई है. डॉक्टर्स को डिप्लोमा होल्डर्स के समकक्ष खड़ा कर दिया गया है.

अगर अमेरिका या अन्य बाहरी देशों की तरह भारत में भी फार्मेसी के विद्यार्थियों के लिए रोजगार के समुचित अवसर उपलब्ध हों, तो हो सकता है कि कोई फार्मासिस्ट दुनिया में फार्मेसी का नाम इसी प्रकार रोशन करे जिस प्रकार कैमिला श्रियर ने किया है.

लेखक, Writer

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}


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