फार्मेसी टीचर्स का डरना क्यों जरूरी है – डर शब्द सभी इंसानों से जुड़ा हुआ है. सभी लोग किसी न किसी चीज से अवश्य डरते हैं. बस फर्क सिर्फ इतना होता है कि कोई कम डरता है और कोई ज्यादा डरता है.
डर शब्द पर कई फिल्मे भी बनी है और जैसा कि हम जानते हैं कि इन फिल्मों का सीधा-सीधा असर इंसानी जीवन पर भी पड़ता है. ऐसी ही एक फिल्म आई थी जिसका नाम था “डरना जरूरी है.” इस फिल्म के टाइटल से फार्मेसी के टीचर्स ने काफी प्रेरणा ली और डरना शुरू कर दिया.
यह डर कई प्रकार का हुआ करता है जैसे अकारण ही नौकरी चले जाने का डर, सैलरी अधिक हो जाने पर नौकरी से निकाले जाने का डर, कॉलेज के मालिक या मैनेजमेंट के सामने उपस्थित होने का डर, इधर उधर से सेटिंग करके जो कुछ प्राप्त किया है उसके खो जाने का डर, अपने अधकचरे ज्ञान का पर्दाफाश हो जाने का डर, आदि.
वैसे नौकरी चले जाने का डर लगभग सभी में होता है लेकिन बाकी डर नहीं होने चाहिए. काबिल व्यक्ति को नौकरियों की कमी नहीं होती है लेकिन टीचर में ऐसी काबिलियत तब आती है जब उसने टीचिंग जॉब को अपने इंटरेस्ट के कारण प्राप्त किया हो. अक्सर यह देखा गया है कि अधिकांश टीचर सिर्फ इसलिए टीचर हैं कि उन्हें दूसरे क्षेत्र में प्रयाप्त अवसर नहीं मिले हैं.
असली टीचर वह होता है जिसे क्लास में जाकर पढ़ाने में मजा आता हो, संतोष मिलता हो. लेकिन जब टीचर को क्लास में जाने से पहले यह पता चले कि विद्यार्थी क्लास बंक करके चले गए हैं और यह सुनकर अगर दिल प्रसन्नता से भर जाए तो समझ लो कि वह इस प्रोफेशन में बाई चांस हैं बाई चॉइस नहीं.
जबसे कोरोना महामारी आई है उसके बाद में एक नया डर और शुरू हो गया है और वह है सैलरी मांगने का डर. अगर मैं राजस्थान की ही बात करूँ तो पिछले दो महीनों से अधिकांश फार्मेसी कॉलेजों में टीचर्स को या तो सैलरी नहीं मिली है या फिर कुछ प्रतीशत ही मिली है.
सैलरी नहीं मिलने पर भी टीचर्स सैलरी माँगने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं. ऐसा भी देखने में आया है कि बहुत से टीचर्स तो यहाँ तक सहमत हैं कि भले हमें अगले चार–पाँच महीनों तक सैलरी नहीं मिले लेकिन हमारी जॉब चलती रहनी चाहिए.
सभी लोग बिना सैलरी के ऑनलाइन क्लास लेकर कॉलेज प्रशासन के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट करने में व्यस्त भी हैं. काम नहीं तो वेतन नहीं नामक जुमला तो सुना था लेकिन काम करके भी वेतन नहीं, पहली बार देखने में आ रहा है.
आखिर फार्मेसी के टीचर्स को काम करने के बाद में भी सैलरी क्यों नहीं चाहिए? इनका इतना दरियादिल होने का क्या कारण है? बिना सैलरी के ये अपना घर कैसे चलाएँगे? एक तो पहले ही टीचर्स को सरकार के नियमानुसार सैलरी नहीं मिलती है और अब उस मानदेयनुमा सैलरी से भी वंचित कर दिया गया है.
ये स्थिति तो तब है जब सभी कॉलेज विद्यार्थियों से पूरी फीस एडवांस में ले चुके होते हैं. जब आप पूरे वर्ष भर या सेमेस्टर की फीस एडवांस में ले चुके हो तब आपको सैलरी देने में क्या दिक्कत है? फार्मेसी कॉलेज कोई इंडस्ट्री थोड़े ही है जो हर महीने की इनकम पर निर्भर रहती है.
जब आप एडवांस में सालभर की फीस ले चुके हो, जब आपको आपके यहाँ किसी भी कोर्स में एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स अगले साल या सेमेस्टर की फीस देंगे ही देंगे, तो फिर आप टीचर्स की सैलरी क्यों नहीं दे रहे हो? भाई, आपका तो प्रीपेड सिस्टम है पहले फीस लेते हो बाद में शिक्षा देते हो.
लेकिन इस प्रश्न को पूछने में डर है कि जिसने पूछा उसकी नौकरी को कोरोना हो जाएगा. अब कौन पूछे? यहाँ स्थिति बिल्ली के गले में घंटी बाँधने वाली हो जाती है. कौन बाँधे?
हर कोई चाहता है कि भगत सिंह पैदा तो होना चाहिए लेकिन दूसरे के घर में. सभी चाहते हैं कि उनको सैलरी भी मिल जाए और कॉलेज मैनेजमेंट को यह भी पता रहे कि उसने तो सैलरी मांगी ही नहीं थी. इसे कहते हैं साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे.
ऐसा भी नहीं है कि फार्मेसी में कोई नियामक संस्था नहीं है. यहाँ पर फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) जैसी केन्द्रीय संस्था के साथ-साथ सभी राज्यों में स्टेट फार्मेसी कौंसिल भी मौजूद हैं.
पीसीआई ने सैलरी के सम्बन्ध में एक एडवाइजरी जारी करके खानापूर्ति जरूर कर दी है. लेकिन जब संस्थाओं द्वारा पीसीआई के अन्य नियम कायदों की धज्जियाँ बड़ी आसानी से उड़ा दी जाती हैं तो यह तो मात्र एक एडवाइजरी ही है. एडवाइजरी मात्र एक सलाह ही तो होती है जिसे मानना या नहीं मानना आपकी मर्जी है.
क्या यह बात पीसीआई को पता नहीं है कि फार्मेसी की संस्थाओं ने फीस एडवांस में ली हुई है और जब फीस ली हुई है तो सैलरी देने में क्या दिक्कत है. आखिर एडवाइजरी की जगह सैलरी देने का आर्डर क्यों नहीं जारी हुआ?
एक तो पीसीआई की नाक के नीचे सभी क्षेत्रों जैसे मैन्युफैक्चरिंग, रिसर्च, मार्केटिंग आदि में फार्मासिस्ट का पर्याप्त विकल्प मौजूद होने की वजह से रोजगार के अवसर काफी कम है, दूसरा अध्यापन कार्य में लगे हुए लोगों को सैलरी नहीं दिया जाना पूरी तरह से पीसीआई की अकर्मण्यता को दर्शाता है.
अगर टीचर्स के हक के लिए पीसीआई नहीं बोलेगी तो कौन बोलेगा? खैर, पीसीआई खुद इस कोरोना महामारी में अपना कही कोई रोल नहीं होने की वजह से परेशान है, शायद इसीलिए पीसीआई प्रेसिडेंट भी दूसरे फार्मेसी प्रोफेशनल्स की तरह ऑनलाइन वेबिनार-वेबिनार खेल रहे हैं.
सभी लोग वेबिनार अटेंड करके उसके सर्टिफिकेट को भारत रत्न जैसे सम्मान की तरह सोशल मीडिया पर शेयर करने में लगे हुए हैं. जो जितने सर्टिफिकेट कबाड़ लेगा, वह उतना ही सम्मानित टीचर बन जाएगा.
वेबिनार के मुद्दे भी बाबा आदम के जमाने के ही हैं. अरे भाई आज भी उन घिसे पिटे मुद्दों पर ही वेबिनार कर रहे हो. आज तो वेबिनार का सबसे बड़ा टॉपिक ही टीचर्स को सैलरी नहीं मिलना होना चाहिए. लेकिन यहाँ पर फिर वही डर सामने आ जाता है.
इस डर को किसी संगठन के माध्यम से आवाज उठाकर मिटाया जा सकता है. चूँकि, संगठन में शक्ति होती है तथा इसकी बातों को समाज और सरकार में गंभीरता के साथ सुना जाता है.
फार्मेसी टीचर्स का एक संगठन भी बना हुआ है जिसे एपीटीआई के नाम से जाना जाता है. अगली बार हम इस संगठन की फार्मेसी टीचर्स के प्रति जिम्मेदारियों के सम्बन्ध में चर्चा करेंगे.
Written by:
Ramesh Sharma
M Pharm, MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA, CHMS
Keywords - pharmacy teacher, salary of pharmacy teacher, norms for salary of pharmacy teacher, corana of pharmacy teacher salary, effect of covid on salary of pharmacy teacher, pharmacy teachers not getting salary, lock down and pharmacy teacher salary, teaching job in pharmacy, teachers in pharmacy, faculty in pharmacy, salary of pharmacy teachers, pharmacy tree
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डर शब्द पर कई फिल्मे भी बनी है और जैसा कि हम जानते हैं कि इन फिल्मों का सीधा-सीधा असर इंसानी जीवन पर भी पड़ता है. ऐसी ही एक फिल्म आई थी जिसका नाम था “डरना जरूरी है.” इस फिल्म के टाइटल से फार्मेसी के टीचर्स ने काफी प्रेरणा ली और डरना शुरू कर दिया.
यह डर कई प्रकार का हुआ करता है जैसे अकारण ही नौकरी चले जाने का डर, सैलरी अधिक हो जाने पर नौकरी से निकाले जाने का डर, कॉलेज के मालिक या मैनेजमेंट के सामने उपस्थित होने का डर, इधर उधर से सेटिंग करके जो कुछ प्राप्त किया है उसके खो जाने का डर, अपने अधकचरे ज्ञान का पर्दाफाश हो जाने का डर, आदि.
वैसे नौकरी चले जाने का डर लगभग सभी में होता है लेकिन बाकी डर नहीं होने चाहिए. काबिल व्यक्ति को नौकरियों की कमी नहीं होती है लेकिन टीचर में ऐसी काबिलियत तब आती है जब उसने टीचिंग जॉब को अपने इंटरेस्ट के कारण प्राप्त किया हो. अक्सर यह देखा गया है कि अधिकांश टीचर सिर्फ इसलिए टीचर हैं कि उन्हें दूसरे क्षेत्र में प्रयाप्त अवसर नहीं मिले हैं.
असली टीचर वह होता है जिसे क्लास में जाकर पढ़ाने में मजा आता हो, संतोष मिलता हो. लेकिन जब टीचर को क्लास में जाने से पहले यह पता चले कि विद्यार्थी क्लास बंक करके चले गए हैं और यह सुनकर अगर दिल प्रसन्नता से भर जाए तो समझ लो कि वह इस प्रोफेशन में बाई चांस हैं बाई चॉइस नहीं.
जबसे कोरोना महामारी आई है उसके बाद में एक नया डर और शुरू हो गया है और वह है सैलरी मांगने का डर. अगर मैं राजस्थान की ही बात करूँ तो पिछले दो महीनों से अधिकांश फार्मेसी कॉलेजों में टीचर्स को या तो सैलरी नहीं मिली है या फिर कुछ प्रतीशत ही मिली है.
सैलरी नहीं मिलने पर भी टीचर्स सैलरी माँगने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं. ऐसा भी देखने में आया है कि बहुत से टीचर्स तो यहाँ तक सहमत हैं कि भले हमें अगले चार–पाँच महीनों तक सैलरी नहीं मिले लेकिन हमारी जॉब चलती रहनी चाहिए.
सभी लोग बिना सैलरी के ऑनलाइन क्लास लेकर कॉलेज प्रशासन के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट करने में व्यस्त भी हैं. काम नहीं तो वेतन नहीं नामक जुमला तो सुना था लेकिन काम करके भी वेतन नहीं, पहली बार देखने में आ रहा है.
आखिर फार्मेसी के टीचर्स को काम करने के बाद में भी सैलरी क्यों नहीं चाहिए? इनका इतना दरियादिल होने का क्या कारण है? बिना सैलरी के ये अपना घर कैसे चलाएँगे? एक तो पहले ही टीचर्स को सरकार के नियमानुसार सैलरी नहीं मिलती है और अब उस मानदेयनुमा सैलरी से भी वंचित कर दिया गया है.
ये स्थिति तो तब है जब सभी कॉलेज विद्यार्थियों से पूरी फीस एडवांस में ले चुके होते हैं. जब आप पूरे वर्ष भर या सेमेस्टर की फीस एडवांस में ले चुके हो तब आपको सैलरी देने में क्या दिक्कत है? फार्मेसी कॉलेज कोई इंडस्ट्री थोड़े ही है जो हर महीने की इनकम पर निर्भर रहती है.
जब आप एडवांस में सालभर की फीस ले चुके हो, जब आपको आपके यहाँ किसी भी कोर्स में एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स अगले साल या सेमेस्टर की फीस देंगे ही देंगे, तो फिर आप टीचर्स की सैलरी क्यों नहीं दे रहे हो? भाई, आपका तो प्रीपेड सिस्टम है पहले फीस लेते हो बाद में शिक्षा देते हो.
लेकिन इस प्रश्न को पूछने में डर है कि जिसने पूछा उसकी नौकरी को कोरोना हो जाएगा. अब कौन पूछे? यहाँ स्थिति बिल्ली के गले में घंटी बाँधने वाली हो जाती है. कौन बाँधे?
हर कोई चाहता है कि भगत सिंह पैदा तो होना चाहिए लेकिन दूसरे के घर में. सभी चाहते हैं कि उनको सैलरी भी मिल जाए और कॉलेज मैनेजमेंट को यह भी पता रहे कि उसने तो सैलरी मांगी ही नहीं थी. इसे कहते हैं साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे.
ऐसा भी नहीं है कि फार्मेसी में कोई नियामक संस्था नहीं है. यहाँ पर फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) जैसी केन्द्रीय संस्था के साथ-साथ सभी राज्यों में स्टेट फार्मेसी कौंसिल भी मौजूद हैं.
पीसीआई ने सैलरी के सम्बन्ध में एक एडवाइजरी जारी करके खानापूर्ति जरूर कर दी है. लेकिन जब संस्थाओं द्वारा पीसीआई के अन्य नियम कायदों की धज्जियाँ बड़ी आसानी से उड़ा दी जाती हैं तो यह तो मात्र एक एडवाइजरी ही है. एडवाइजरी मात्र एक सलाह ही तो होती है जिसे मानना या नहीं मानना आपकी मर्जी है.
क्या यह बात पीसीआई को पता नहीं है कि फार्मेसी की संस्थाओं ने फीस एडवांस में ली हुई है और जब फीस ली हुई है तो सैलरी देने में क्या दिक्कत है. आखिर एडवाइजरी की जगह सैलरी देने का आर्डर क्यों नहीं जारी हुआ?
एक तो पीसीआई की नाक के नीचे सभी क्षेत्रों जैसे मैन्युफैक्चरिंग, रिसर्च, मार्केटिंग आदि में फार्मासिस्ट का पर्याप्त विकल्प मौजूद होने की वजह से रोजगार के अवसर काफी कम है, दूसरा अध्यापन कार्य में लगे हुए लोगों को सैलरी नहीं दिया जाना पूरी तरह से पीसीआई की अकर्मण्यता को दर्शाता है.
अगर टीचर्स के हक के लिए पीसीआई नहीं बोलेगी तो कौन बोलेगा? खैर, पीसीआई खुद इस कोरोना महामारी में अपना कही कोई रोल नहीं होने की वजह से परेशान है, शायद इसीलिए पीसीआई प्रेसिडेंट भी दूसरे फार्मेसी प्रोफेशनल्स की तरह ऑनलाइन वेबिनार-वेबिनार खेल रहे हैं.
सभी लोग वेबिनार अटेंड करके उसके सर्टिफिकेट को भारत रत्न जैसे सम्मान की तरह सोशल मीडिया पर शेयर करने में लगे हुए हैं. जो जितने सर्टिफिकेट कबाड़ लेगा, वह उतना ही सम्मानित टीचर बन जाएगा.
वेबिनार के मुद्दे भी बाबा आदम के जमाने के ही हैं. अरे भाई आज भी उन घिसे पिटे मुद्दों पर ही वेबिनार कर रहे हो. आज तो वेबिनार का सबसे बड़ा टॉपिक ही टीचर्स को सैलरी नहीं मिलना होना चाहिए. लेकिन यहाँ पर फिर वही डर सामने आ जाता है.
इस डर को किसी संगठन के माध्यम से आवाज उठाकर मिटाया जा सकता है. चूँकि, संगठन में शक्ति होती है तथा इसकी बातों को समाज और सरकार में गंभीरता के साथ सुना जाता है.
फार्मेसी टीचर्स का एक संगठन भी बना हुआ है जिसे एपीटीआई के नाम से जाना जाता है. अगली बार हम इस संगठन की फार्मेसी टीचर्स के प्रति जिम्मेदारियों के सम्बन्ध में चर्चा करेंगे.
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