जन्माष्टमी सिखाती है कृष्ण के आदर्श - जन्माष्टमी का त्यौहार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र के दिन धूमधाम से मनाया जाता है।
जन्माष्टमी का त्यौहार श्री कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है क्योंकि यह भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव है। इस दिन श्रीकृष्ण ने इस धरती पर जन्म लिया था तथा धरती को कंस के अत्याचारों से मुक्त करवाया था।
मथुरा और वृन्दावन को हमारे देश में तीर्थ स्थल का दर्जा प्राप्त है क्योंकि इन जगहों से कृष्ण का नाता रहा है। मथुरा कृष्ण की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है तथा वृन्दावन में कृष्ण का बचपन बीता है।
आज भी जब हम इन स्थानों पर जाते हैं तो हमें वहाँ पर कृष्ण के विद्यमान होनें की अनुभूति होती है और मन श्रद्धा और भक्ति से सराबोर हो उठता है। हमारा रोम रोम कृष्णमय हो जाता है।
इस दिन भगवान कृष्ण के मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है तथा उनके विभिन्न रूपों का दर्शन कराया जाता है। प्रसाद के रूप में पंजीरी वितरित की जाती है। जनसाधारण द्वारा इस दिन उपवास रखकर अपनी श्रद्धा और आस्था प्रकट की जाती है।
कृष्ण के आदर्शो को जीवित रखने तथा उन्ही का अनुसरण करने के लिए इस दिन वो सभी कार्य किये जातें हैं जो भगवान कृष्ण को प्रिय थे। कृष्ण को दही माखन अत्यंत प्रिय थे तथा इनके लिए वो इनकी चोरी तक कर लिया करते थे।
जन्माष्टमी के दिन सबसे प्रमुख और मनोरंजक कार्यक्रम दही हांड़ी उत्सव का आयोजन होता है। इस उत्सव को देश के लगभग हर हिस्से में धूमधाम से मनाया जाता है। दही हांड़ी उत्सव के लिए समाज के हर वर्ग तथा हर उम्र के लोगो में खासा उत्साह होता है।
युवावर्ग में दही हांडी के लिए विशेष उत्सुकता तथा उमंग होती है क्योंकि ये युवा ही कान्हा का प्रतीक बनकर दही हांड़ी उत्सव में भाग लेते हैं।
भगवान् कृष्ण योगेश्वर कहलाते हैं जो सभी सोलह कलाओं से परिपूर्ण थे। महाभारत के युद्ध में उनके द्वारा अर्जुन को कहे गए शब्द गीता का ज्ञान बन कर आज भी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं।
भगवान् कृष्ण ने नटखट बालक, पुत्र, प्रेमी, पति, पिता, राजा, मार्गदर्शक, योगी आदि सभी रूपों को इस प्रकार जिया कि वो जनसाधारण के समक्ष अनुकरणीय बन गए।
वो नटखटों में नटखट, प्रेमियों में प्रेमी, राजाओं में राजा, योद्धाओं में योद्धा, कूटनीतिज्ञो में कूटनीतिज्ञ, योगियों में योगी थे जिनका एक एक कथन ज्ञान का सागर है और एक एक कर्म सभी के लिए अनुकरणीय है।
जन्माष्टमी का त्यौहार श्री कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है क्योंकि यह भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव है। इस दिन श्रीकृष्ण ने इस धरती पर जन्म लिया था तथा धरती को कंस के अत्याचारों से मुक्त करवाया था।
मथुरा और वृन्दावन को हमारे देश में तीर्थ स्थल का दर्जा प्राप्त है क्योंकि इन जगहों से कृष्ण का नाता रहा है। मथुरा कृष्ण की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है तथा वृन्दावन में कृष्ण का बचपन बीता है।
आज भी जब हम इन स्थानों पर जाते हैं तो हमें वहाँ पर कृष्ण के विद्यमान होनें की अनुभूति होती है और मन श्रद्धा और भक्ति से सराबोर हो उठता है। हमारा रोम रोम कृष्णमय हो जाता है।
इस दिन भगवान कृष्ण के मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है तथा उनके विभिन्न रूपों का दर्शन कराया जाता है। प्रसाद के रूप में पंजीरी वितरित की जाती है। जनसाधारण द्वारा इस दिन उपवास रखकर अपनी श्रद्धा और आस्था प्रकट की जाती है।
कृष्ण के आदर्शो को जीवित रखने तथा उन्ही का अनुसरण करने के लिए इस दिन वो सभी कार्य किये जातें हैं जो भगवान कृष्ण को प्रिय थे। कृष्ण को दही माखन अत्यंत प्रिय थे तथा इनके लिए वो इनकी चोरी तक कर लिया करते थे।
जन्माष्टमी के दिन सबसे प्रमुख और मनोरंजक कार्यक्रम दही हांड़ी उत्सव का आयोजन होता है। इस उत्सव को देश के लगभग हर हिस्से में धूमधाम से मनाया जाता है। दही हांड़ी उत्सव के लिए समाज के हर वर्ग तथा हर उम्र के लोगो में खासा उत्साह होता है।
युवावर्ग में दही हांडी के लिए विशेष उत्सुकता तथा उमंग होती है क्योंकि ये युवा ही कान्हा का प्रतीक बनकर दही हांड़ी उत्सव में भाग लेते हैं।
भगवान् कृष्ण योगेश्वर कहलाते हैं जो सभी सोलह कलाओं से परिपूर्ण थे। महाभारत के युद्ध में उनके द्वारा अर्जुन को कहे गए शब्द गीता का ज्ञान बन कर आज भी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं।
भगवान् कृष्ण ने नटखट बालक, पुत्र, प्रेमी, पति, पिता, राजा, मार्गदर्शक, योगी आदि सभी रूपों को इस प्रकार जिया कि वो जनसाधारण के समक्ष अनुकरणीय बन गए।
वो नटखटों में नटखट, प्रेमियों में प्रेमी, राजाओं में राजा, योद्धाओं में योद्धा, कूटनीतिज्ञो में कूटनीतिज्ञ, योगियों में योगी थे जिनका एक एक कथन ज्ञान का सागर है और एक एक कर्म सभी के लिए अनुकरणीय है।
कृष्ण के महान दार्शनिक विचारों का संग्रह गीता नामक ग्रन्थ है जिसमे जीवन और कर्म का महत्त्व समझाया गया है।
भगवान् कृष्ण ने अलग अलग रूपों में बहुत अलग अलग लीलाएँ की है और इन्ही विभिन्न रूपों के अनुसार उनको भिन्न भिन्न नामों से पुकारा जाता है जिनमे कन्हैया, कान्हा, गिरधर, माधव, बंशीधर, मुरलीधर, रणछोड़ आदि प्रमुख है।
भगवान् कृष्ण श्याम वर्ण के होने के कारण श्याम नाम से भी जाने जाते हैं जिसका अपने आप में एक विशिष्ट स्थान है।
जिस प्रकार श्याम वर्ण सभी बुराइयों को अपने आप में समाहित कर लेता है उसी प्रकार कृष्ण ने इन सभी रूपों को अपने अन्दर समाहित कर सभी बुराइयों को समाप्त कर सुखी जीवन जीने की प्रेरणा दी है।
हमें कृष्ण के आदर्शों और कर्मों का अनुसरण करने का संकल्प लेना चाहिए। हमें श्रीमदभागवतगीता का अध्ययन करके उसे अपनें जीवन में समाहित कर उसका अनुसरण करना चाहिए ताकि हमारा जीवन संतुष्ट बनें और हमें ज्ञान की प्राप्ति हो।
जन्माष्टमी सिखाती है कृष्ण के आदर्श Janmashtami teaches ideals of Krishna
Written by:
Ramesh Sharma
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भगवान् कृष्ण श्याम वर्ण के होने के कारण श्याम नाम से भी जाने जाते हैं जिसका अपने आप में एक विशिष्ट स्थान है।
जिस प्रकार श्याम वर्ण सभी बुराइयों को अपने आप में समाहित कर लेता है उसी प्रकार कृष्ण ने इन सभी रूपों को अपने अन्दर समाहित कर सभी बुराइयों को समाप्त कर सुखी जीवन जीने की प्रेरणा दी है।
हमें कृष्ण के आदर्शों और कर्मों का अनुसरण करने का संकल्प लेना चाहिए। हमें श्रीमदभागवतगीता का अध्ययन करके उसे अपनें जीवन में समाहित कर उसका अनुसरण करना चाहिए ताकि हमारा जीवन संतुष्ट बनें और हमें ज्ञान की प्राप्ति हो।
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