सुन्दरता का वास्तविक मतलब - सुन्दरता हर किसी के जीवन की परमावश्यक ख्वाहिश रही है तथा येन केन प्रकारेण हर व्यक्ति सुन्दर दिखना चाहता है। सुन्दरता के इसी महत्व को देखते हुए दुनिया भर में सौन्दर्य की अनेकों परिभाषाएँ गढ़ी गई है।
हर कोई सुन्दरता को अपने पास समेट लेना चाहता है फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष। हर कोई दूसरे से सुन्दर दिखना चाहता है तथा इसी होड़ में लगा रहता है।
सुन्दरता मनमोहक होती है तथा हर कोई सुन्दरता को पसंद करता है फिर चाहे वह प्राकृतिक सौन्दर्य हो या फिर कृत्रिम। सुन्दरता का अपना एक अलग ही महत्त्व होता है।
जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को अच्छे तरीके से संपन्न करता है तब भी अनायास ही उसके लिए सुन्दर शब्द निकल पड़ते हैं। सुन्दरता शब्दों की मोहताज नहीं होती है यह तो बिना कोई शब्द कहे ही मन को भा जाती है।
सुन्दरता की सबसे अधिक व्याख्या अगर किसी के लिए की गई है तो वे है महिलाएँ। महिलाओं को सौन्दर्य का पर्याय और सुन्दरता को उनके लिए अतिआवश्यक समझा जाता है तथा उनकी प्राथमिकताओं में इसे सर्वोपरि दर्जा दिया जाता है।
हर महिला की यही ख्वाहिश होती है कि वह सुन्दर दिखे। सुन्दरता नैसर्गिक होती है परन्तु फिर भी इसे कृत्रिम तरीको का इस्तेमाल करके निखारने की कोशिश अनवरत जारी रहती है।
यह एक विडम्बना है कि हमेशा से महिलाओं का परम लक्ष्य पुरुष को आकर्षित करना समझा जाता रहा है जिसमे पुरुषों की बनिस्पत महिलाओं का अधिक योगदान रहा है क्योंकि उन्होंने अपनी मानसिकता में समय के साथ भी अधिक परिवर्तन नहीं किया है।
महिलाओं को पुरुष को आकर्षित करने का जरिया माना जाता रहा है जिसके लिए महिला का सुन्दर होना अति आवश्यक है क्योंकि अधिकांश पुरुष जाने अनजाने में सौन्दर्य के उपासक होते हैं। सुन्दर दिखना महिलाओं का नैसर्गिक गुण तथा प्रकृति भी होती है।
महिलाओं के लिए सुन्दरता सामाजिक स्तर पर भी जरूरी समझी जाती है क्योंकि उनकी शादी ब्याह में यह बहुत सहायक होती है। तन की सुन्दरता हमेशा से मन की सुन्दरता को चिड़ाते हुए शीर्ष पर रहती है। हर कोई प्रथम दृष्टया तन की सुन्दरता को ही प्राथमिकता देता है।
अब बदलते वक्त की वजह से इन स्थितियों में थोड़ा बहुत बदलाव आ रहा है लेकिन सदियों की बेड़ियाँ इतनी आसानी से नहीं टूटा करती हैं।
पुरुषों में भी सुन्दर दिखने की चाह पिछले कुछ वर्षों में यकायक बढ़ी है तथा वे भी सुन्दर दिखने के लिए उन सभी उपायों तथा साधनों का इस्तेमाल करने लगे हैं जिनपर महिलाओं का एकछत्र राज रहा है।
पुरुष भी बहुत तरह के सौन्दर्य प्रसाधनों का सहारा लेने लग गए हैं जिनमे रंग गोरा करने वाली क्रीम, कोल्ड क्रीम, फेशिअल आदि प्रमुख है। पहले आमतौर पर पुरुष सिर्फ और सिर्फ दाढ़ी बनवाने तथा बाल कटवाने के अतिरिक्त इन सभी चीजों से दूर रहा करते थे।
सौन्दर्य प्रसाधनों को सिर्फ और सिर्फ महिलाओं के उपयोग की वस्तु ही समझा जाता रहा है तथा पुरुष इनका प्रयोग नहीं करते थे परन्तु पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से पुरुषों ने अपना पारंपरिक पुरुषत्व त्यागकर कृत्रिम पुरुषत्व धारण कर लिया है।
पुरुषों तथा महिलाओं के रहने तथा पहनने के तरीके एक दूसरे से इतने मिलने जुलने लग गए हैं कि बहुत बार तो यह पहचानना कठिन हो जाता है कि यह पुरुष है या फिर महिला।
हर कोई सुन्दरता को अपने पास समेट लेना चाहता है फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष। हर कोई दूसरे से सुन्दर दिखना चाहता है तथा इसी होड़ में लगा रहता है।
सुन्दरता मनमोहक होती है तथा हर कोई सुन्दरता को पसंद करता है फिर चाहे वह प्राकृतिक सौन्दर्य हो या फिर कृत्रिम। सुन्दरता का अपना एक अलग ही महत्त्व होता है।
जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को अच्छे तरीके से संपन्न करता है तब भी अनायास ही उसके लिए सुन्दर शब्द निकल पड़ते हैं। सुन्दरता शब्दों की मोहताज नहीं होती है यह तो बिना कोई शब्द कहे ही मन को भा जाती है।
सुन्दरता की सबसे अधिक व्याख्या अगर किसी के लिए की गई है तो वे है महिलाएँ। महिलाओं को सौन्दर्य का पर्याय और सुन्दरता को उनके लिए अतिआवश्यक समझा जाता है तथा उनकी प्राथमिकताओं में इसे सर्वोपरि दर्जा दिया जाता है।
हर महिला की यही ख्वाहिश होती है कि वह सुन्दर दिखे। सुन्दरता नैसर्गिक होती है परन्तु फिर भी इसे कृत्रिम तरीको का इस्तेमाल करके निखारने की कोशिश अनवरत जारी रहती है।
यह एक विडम्बना है कि हमेशा से महिलाओं का परम लक्ष्य पुरुष को आकर्षित करना समझा जाता रहा है जिसमे पुरुषों की बनिस्पत महिलाओं का अधिक योगदान रहा है क्योंकि उन्होंने अपनी मानसिकता में समय के साथ भी अधिक परिवर्तन नहीं किया है।
महिलाओं को पुरुष को आकर्षित करने का जरिया माना जाता रहा है जिसके लिए महिला का सुन्दर होना अति आवश्यक है क्योंकि अधिकांश पुरुष जाने अनजाने में सौन्दर्य के उपासक होते हैं। सुन्दर दिखना महिलाओं का नैसर्गिक गुण तथा प्रकृति भी होती है।
महिलाओं के लिए सुन्दरता सामाजिक स्तर पर भी जरूरी समझी जाती है क्योंकि उनकी शादी ब्याह में यह बहुत सहायक होती है। तन की सुन्दरता हमेशा से मन की सुन्दरता को चिड़ाते हुए शीर्ष पर रहती है। हर कोई प्रथम दृष्टया तन की सुन्दरता को ही प्राथमिकता देता है।
अब बदलते वक्त की वजह से इन स्थितियों में थोड़ा बहुत बदलाव आ रहा है लेकिन सदियों की बेड़ियाँ इतनी आसानी से नहीं टूटा करती हैं।
पुरुषों में भी सुन्दर दिखने की चाह पिछले कुछ वर्षों में यकायक बढ़ी है तथा वे भी सुन्दर दिखने के लिए उन सभी उपायों तथा साधनों का इस्तेमाल करने लगे हैं जिनपर महिलाओं का एकछत्र राज रहा है।
पुरुष भी बहुत तरह के सौन्दर्य प्रसाधनों का सहारा लेने लग गए हैं जिनमे रंग गोरा करने वाली क्रीम, कोल्ड क्रीम, फेशिअल आदि प्रमुख है। पहले आमतौर पर पुरुष सिर्फ और सिर्फ दाढ़ी बनवाने तथा बाल कटवाने के अतिरिक्त इन सभी चीजों से दूर रहा करते थे।
सौन्दर्य प्रसाधनों को सिर्फ और सिर्फ महिलाओं के उपयोग की वस्तु ही समझा जाता रहा है तथा पुरुष इनका प्रयोग नहीं करते थे परन्तु पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से पुरुषों ने अपना पारंपरिक पुरुषत्व त्यागकर कृत्रिम पुरुषत्व धारण कर लिया है।
पुरुषों तथा महिलाओं के रहने तथा पहनने के तरीके एक दूसरे से इतने मिलने जुलने लग गए हैं कि बहुत बार तो यह पहचानना कठिन हो जाता है कि यह पुरुष है या फिर महिला।
दरअसल तन की सुन्दरता सिर्फ और सिर्फ जवानी तक ही साथ देती है तथा जिस दिन जवानी साथ छोड़ती है उस दिन के बाद से सिर्फ और सिर्फ मन की सुन्दरता ही काम आती है।
हम यह कह सकते हैं कि जवानी के दिनों में तन की सुन्दरता मन की सुन्दरता को अधिक टिकने नहीं देती परन्तु जवानी गुजर जाने के पश्चात यह खुद टिक नहीं पाती है।
तन की सुन्दरता सिर्फ और सिर्फ कुछ समय की मेहमान होती है परन्तु मन की सुन्दरता पैदा होने से लेकर मृत्यु पर्यन्त हमारा साथ देती है।
जो हमेशा हमारा निस्वार्थ भाव से साथ देती है वही हमारा सच्चा साथी होता है। अतः हमें तन की सुन्दरता से अधिक प्रभावित न होकर मन की सुन्दरता से प्रभावित होना चाहिए।
किसी को देखने तथा उससे मिलने पर सर्वप्रथम तन की सुन्दरता ही दृष्टिगोचर होती है परिणामस्वरूप अधिकाँश लोग उस सौन्दर्य से प्रभावित होकर अपने लक्ष्य से भ्रमित हो जाते हैं।
मन की सुन्दरता प्रथम दृष्टया प्रकट नहीं होती है तथा उससे मिलने के लिए पारखी बनकर उसे परखना पड़ता है। मन की सुन्दरता से मिलने के लिए परिश्रम करना पड़ता है जबकि तन की सुन्दरता के दर्शन बिना परिश्रम के कहीं भी हो जाते हैं।
यह आवश्यक नहीं होता है कि जो तन से सुन्दर हो वह मन से भी सुन्दर हो और जो मन से सुन्दर हो वह तन से भी सुन्दर हो। तन और मन दोनों तरह की सुन्दरता का एक जगह मिलना थोड़ा कठिन होता है।
अतः हमें हर क्षेत्र के बाहरी आवरण से प्रभावित न होते हुये उसके आतंरिक गुणों को परख कर उनसे प्रभावित होना चाहिए क्योंकि वे ही सम्पूर्ण जीवन हमारे साथ चल सकते हैं।
सुन्दरता का वास्तविक मतलब Real meaning of beauty
Written by:
Ramesh Sharma
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तन की सुन्दरता सिर्फ और सिर्फ कुछ समय की मेहमान होती है परन्तु मन की सुन्दरता पैदा होने से लेकर मृत्यु पर्यन्त हमारा साथ देती है।
जो हमेशा हमारा निस्वार्थ भाव से साथ देती है वही हमारा सच्चा साथी होता है। अतः हमें तन की सुन्दरता से अधिक प्रभावित न होकर मन की सुन्दरता से प्रभावित होना चाहिए।
किसी को देखने तथा उससे मिलने पर सर्वप्रथम तन की सुन्दरता ही दृष्टिगोचर होती है परिणामस्वरूप अधिकाँश लोग उस सौन्दर्य से प्रभावित होकर अपने लक्ष्य से भ्रमित हो जाते हैं।
मन की सुन्दरता प्रथम दृष्टया प्रकट नहीं होती है तथा उससे मिलने के लिए पारखी बनकर उसे परखना पड़ता है। मन की सुन्दरता से मिलने के लिए परिश्रम करना पड़ता है जबकि तन की सुन्दरता के दर्शन बिना परिश्रम के कहीं भी हो जाते हैं।
यह आवश्यक नहीं होता है कि जो तन से सुन्दर हो वह मन से भी सुन्दर हो और जो मन से सुन्दर हो वह तन से भी सुन्दर हो। तन और मन दोनों तरह की सुन्दरता का एक जगह मिलना थोड़ा कठिन होता है।
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