सुख और दुःख हैं सिक्के के दो पहलू - सुख और दुःख जीवन के दो पहलू होते हैं जो कभी भी साथ साथ नहीं रहते हैं। ये एक दूसरे के पूरक होते हैं और जब एक रहता हैं तो दूसरा नहीं रहता हैं।
इन्हें धूप छाँव, सिक्के के दो पहलुओं की संज्ञा दी जाती हैं। हर इंसान के जीवन में सुख और दुःख दोनों का क्रम चलता रहता हैं।
धरा पर ऐसा कोई इंसान नहीं हैं जिसने इन दोनों का अनुभव नहीं किया हो। सुखों और दुखों का इंसान से हमेशा से नाता रहा हैं तथा जीवन में इनका एक अलग ही महत्त्व हैं।
अगर सुख और दुःख इंसान की जिन्दगी में नहीं होंगे तो इंसान के जीवन में एकरूपता का समावेश हो जायेगा जिससे इंसान का जीवन बड़ा नीरस हो जाएगा।
इन सुखों और दुखों के चक्र ने ही हमें इंसान बनाये हुए रखा हैं अन्यथा जीवन जीने में हममें और पशुओं में अधिक फर्क नहीं होता। सुख के दिन बड़े आनंदित करने वाले होते हैं।
सुख के दिन इतनी शीघ्रता से व्यतीत होते हैं कि वक़्त भागता हुआ सा प्रतीत होता है तथा इसके विपरीत दुःख के दिन बड़े कष्टदायक और कठिनाई भरे होते हैं।
दुःख के दिनों में ऐसा लगता हैं जैसे वक़्त अपनी गति भूलकर मंद पड़ गया हो। एक दिन एक एक वर्ष की तरह प्रतीत होता हैं और वक्त काटे नहीं कटता हैं।
आखिर ऐसा क्यों होता हैं कि सुखी इंसान को एक दिन का समय बहुत कम लगता हैं तथा दुखी इंसान को वही एक दिन बहुत ज्यादा लगता हैं?
इन्हें धूप छाँव, सिक्के के दो पहलुओं की संज्ञा दी जाती हैं। हर इंसान के जीवन में सुख और दुःख दोनों का क्रम चलता रहता हैं।
धरा पर ऐसा कोई इंसान नहीं हैं जिसने इन दोनों का अनुभव नहीं किया हो। सुखों और दुखों का इंसान से हमेशा से नाता रहा हैं तथा जीवन में इनका एक अलग ही महत्त्व हैं।
अगर सुख और दुःख इंसान की जिन्दगी में नहीं होंगे तो इंसान के जीवन में एकरूपता का समावेश हो जायेगा जिससे इंसान का जीवन बड़ा नीरस हो जाएगा।
इन सुखों और दुखों के चक्र ने ही हमें इंसान बनाये हुए रखा हैं अन्यथा जीवन जीने में हममें और पशुओं में अधिक फर्क नहीं होता। सुख के दिन बड़े आनंदित करने वाले होते हैं।
सुख के दिन इतनी शीघ्रता से व्यतीत होते हैं कि वक़्त भागता हुआ सा प्रतीत होता है तथा इसके विपरीत दुःख के दिन बड़े कष्टदायक और कठिनाई भरे होते हैं।
दुःख के दिनों में ऐसा लगता हैं जैसे वक़्त अपनी गति भूलकर मंद पड़ गया हो। एक दिन एक एक वर्ष की तरह प्रतीत होता हैं और वक्त काटे नहीं कटता हैं।
आखिर ऐसा क्यों होता हैं कि सुखी इंसान को एक दिन का समय बहुत कम लगता हैं तथा दुखी इंसान को वही एक दिन बहुत ज्यादा लगता हैं?
सुखों में मनुष्य सोना नहीं चाहता तथा उन्हें भोगने के लिए ज्यादा से ज्यादा जागना चाहता हैं जबकि वही मनुष्य दुखों में सो नहीं पाता हैं अर्थात सुख में मनुष्य सोना नहीं चाहता और दुःख मनुष्य को सोने नहीं देता।
दोनों परिस्थितियों में इंसान की मनोवृत्ति में बहुत ज्यादा अंतर होता हैं। दुःख में इंसान बुझा बुझा सा तथा उदास रहता हैं जिसका किसी भी कार्य में मन नहीं लगता हैं और वही इंसान सुख में प्रफुल्लित रहकर समय को ज्यादा से ज्यादा भोगना चाहता हैं।
आखिर ये सुख और दुःख क्या होते हैं जिनका इंसानी जीवन पर इतना ज्यादा असर होता हैं? मेरे विचारानुसार सुख और दुःख दो भिन्न भिन्न परिस्थितियाँ हैं जो इंसान की मानसिक स्थिति को बहुत ज्यादा प्रभावित करती हैं। सुख तथा दुःख की परिभाषा तथा मायनें हर इंसान के लिए भिन्न भिन्न होते हैं।
एक इंसान जिस परिस्थिति में अपने आपको सुखी महसूस करता हैं, हो सकता हैं कि दूसरा इंसान उस परिस्थिति में सुखी नहीं हो। इसी प्रकार एक इंसान जिन परिस्थितियों में दुखी रहता हैं हो सकता हैं कि दूसरा इंसान उन परिस्थितियों को सहजता से ले तथा दुखी नहीं हो।
अधिकतर इंसानों की नजर में सुखी इंसान वे इंसान होते हैं जिसके पास धन दौलत और हर तरह की भौतिक सुख सुविधाएँ होती हैं। लोग सोचते हैं की खुश रहने का सबसे बड़ा रहस्य सिर्फ और सिर्फ पैसा होता हैं तथा पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता हैं।
जब इंसान के पास धन आ जाता हैं तथा जब वह धनी जीवन व्यतीत करने लग जाता है तब उसे पता चलता हैं कि सुख पैसे से प्राप्त नहीं होता हैं।
सुखी इंसान वो होता हैं जो हर पारिस्थितियों में संतुष्ट रहना सीख लेता हैं। संतुष्टिपूर्ण जीवन ही सुखी जीवन हैं। संतुष्ट व्यक्ति हमेशा सुखी रहता हैं जबकि असंतुष्ट व्यक्ति हमेशा दुखी रहता हैं। जब इंसान इच्छाओं तथा लालसाओं पर काबू पा लेता हैं तब वो संतुष्ट और सुखी हो जाता हैं।
जब इंसान की लालसाएं असीमित होने लगती हैं तब वो सबकुछ प्राप्त करने के पश्चात भी असंतुष्ट रहता हैं क्योकि कामनाएँ असीमित होती हैं जिसके परिणामस्वरूप दुःख पैदा होना शुरू हो जाता हैं।
हमें अपनी इच्छाओं और कामनाओं पर नियंत्रण करके अपनी पारिस्थितियों को बदलने का सतत प्रयास करना चाहिए ताकि हम स्वयं एवं हमसे सम्बंधित हर व्यक्ति सुखी रह सके।
सुख और दुःख हैं सिक्के के दो पहलू Happiness and sorrow are two sides of the coin
Written by:
Ramesh Sharma
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दोनों परिस्थितियों में इंसान की मनोवृत्ति में बहुत ज्यादा अंतर होता हैं। दुःख में इंसान बुझा बुझा सा तथा उदास रहता हैं जिसका किसी भी कार्य में मन नहीं लगता हैं और वही इंसान सुख में प्रफुल्लित रहकर समय को ज्यादा से ज्यादा भोगना चाहता हैं।
आखिर ये सुख और दुःख क्या होते हैं जिनका इंसानी जीवन पर इतना ज्यादा असर होता हैं? मेरे विचारानुसार सुख और दुःख दो भिन्न भिन्न परिस्थितियाँ हैं जो इंसान की मानसिक स्थिति को बहुत ज्यादा प्रभावित करती हैं। सुख तथा दुःख की परिभाषा तथा मायनें हर इंसान के लिए भिन्न भिन्न होते हैं।
एक इंसान जिस परिस्थिति में अपने आपको सुखी महसूस करता हैं, हो सकता हैं कि दूसरा इंसान उस परिस्थिति में सुखी नहीं हो। इसी प्रकार एक इंसान जिन परिस्थितियों में दुखी रहता हैं हो सकता हैं कि दूसरा इंसान उन परिस्थितियों को सहजता से ले तथा दुखी नहीं हो।
अधिकतर इंसानों की नजर में सुखी इंसान वे इंसान होते हैं जिसके पास धन दौलत और हर तरह की भौतिक सुख सुविधाएँ होती हैं। लोग सोचते हैं की खुश रहने का सबसे बड़ा रहस्य सिर्फ और सिर्फ पैसा होता हैं तथा पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता हैं।
जब इंसान के पास धन आ जाता हैं तथा जब वह धनी जीवन व्यतीत करने लग जाता है तब उसे पता चलता हैं कि सुख पैसे से प्राप्त नहीं होता हैं।
सुखी इंसान वो होता हैं जो हर पारिस्थितियों में संतुष्ट रहना सीख लेता हैं। संतुष्टिपूर्ण जीवन ही सुखी जीवन हैं। संतुष्ट व्यक्ति हमेशा सुखी रहता हैं जबकि असंतुष्ट व्यक्ति हमेशा दुखी रहता हैं। जब इंसान इच्छाओं तथा लालसाओं पर काबू पा लेता हैं तब वो संतुष्ट और सुखी हो जाता हैं।
जब इंसान की लालसाएं असीमित होने लगती हैं तब वो सबकुछ प्राप्त करने के पश्चात भी असंतुष्ट रहता हैं क्योकि कामनाएँ असीमित होती हैं जिसके परिणामस्वरूप दुःख पैदा होना शुरू हो जाता हैं।
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